NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 3 || साना साना हाथ जोड़ि || Sana Sana Hath Jodi Summary

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 3 : I’m going to give you with a CBSE Sana Sana Hath Jodi question answer

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साना साना हाथ जोड़ि | Sana Sana Hath Jodi Summary

प्रस्तावना-लेखिका मधु कांकरिया ने अपने यात्रा वृतांत में गंगटोक से लेकर हिमालय तक की यात्रा में प्राकृतिक दृश्यों के वर्णन के साथ उन दृश्यों को भी हुआ है जिनमें विषम परिस्थितियों में पुरुष और महिलाएं जीवन संघर्ष में लगी रहती हैं। इस पाठ में लेखिका के सहदया होने का पता चलता है क्योंकि उसका मन प्रकृति की मनोहारी छटा देखने से अधिक जोखिम भरे कार्यों को करती हुई महिलाओं की ओर देखने में लगता है।

गंगटोक शहर-लेखिका को गंगटोक शहर देखकर ऐसा लगा कि आसमान की सुंदरता नीचे बिखर गई है और सारे तारे नीचे बिखर कर टिमटिमा रहे हैं। बादशाहों का एक ऐसा शहर जिसका सुबह, शाम, रात सब कुछ सुंदर था। सुबह होने पर एक प्रार्थना होंठों को छूने लगी-साना-साना हाथ जोड़ि, गर्दहु प्रार्थना हाम्रो जीवन तिम्रो कोसेली (छोटे-छोटे हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रही हूँ कि मेरा सारा जीवन अच्छाइयों को समर्पित हो) लेखिका ने प्रार्थना के ये बोल आज सुबह ही एक नेपाली युवती से सीखे थे।

सुबह यूमयांग के लिए निकलना था, किंतु आँख खुलते ही बालकनी की ओर भागी थी, क्योंकि लोगों ने बताया था कि यदि मौसम साफ हो तो बालकनी से ही हिमालय की सबसे ऊंची चोटी कंचनजंघा दिखाई देती है। किंतु पिछले वर्ष की तरह ही आज भी आसमान हल्के-हल्के बादलों में ढका था। कंचनजंघा तो नहीं दिखाई दी किंतु तरह-तरह के इतने सारे रंग-बिरंगे फूल दिखाई दिए कि लगा कि फूलों के बाग में आ गई है।

यूमथांग गंगटोक से 149 कि.मी. दूर था जिसके बारे में ड्राइवर जितेन नागें बता रहा था कि सारे रास्ते में हिमालय की गहनतम घाटियों और फूलों से लदी वादियों मिलेंगी और लेखिका उससे पूछने लगी थी- क्या वहीं बर्फ मिलेगी?

यूमथांग तक का रास्ता-यूमयांग के रास्ते में शांति और अहिंसा के प्रतीक रूप में एक कतार में लगी सफेद रंग की 108 मंत्र लिखी पताकाएँ दिखाई दीं। इनके बारे में नागें ने बताया यहाँ बुद्ध की बड़ी मान्यता है। जब भी किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है, तो उसकी आत्मा की शांति के लिए शहर से दूर किसी पवित्र स्थान पर ये 108 पताकाएँ फहरा दी जाती हैं। इन्हें उत्तारा नहीं जाता है। अपने-आप धीरे-धीरे नष्ट हो जाती हैं। कई बार नए कार्य की शुरुआत में भी ऐसी पताकाएँ लगा दी जाती हैं। पर वे रंगीन होती हैं। नार्गे बोले जा रहा था किंतु लेखिका नार्गे की जीप में लगी दलाई लामा की तसवीर की ओर देखे जा रही थी। उसने ऐसी दलाई लामा की तसवीरें दुकानों पर भी टेंगी देखी थीं। साना साना हाथ जोड़ि

रास्ते में कवी-लॉग स्टॉक पड़ा। जहाँ 'गाइड' फिल्म की शूटिंग हुई थी। यहाँ स्थानीय जातियों के बीच चले सुदीर्घ झगड़ों के बाद शांति बार्ता और संधि-पत्र के बारे में बताया। आगे बढ़े। रास्ते में एक कुटिया में घूमते हुए धर्म चक्र के बारे में बताया कि यह प्रेअर व्हील है। इसको घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं। धीरे-धीरे ऊंचाई की ओर बढ़ रहे थे। कार्य करते हुए नेपाली युवक-युवतियाँ और छोटे-छोटे घर दिखाई दे रहे थे और हिमालय विराट रूप में दिखाई दे रहा था। दर्शकों यात्रियों का काम्य हिमालय, पल-पल परिवर्तित हिमालय हिमालय बड़ा होते-होते विशालकाय होने लगा। भीमकाय पर्वतों के बीच और घाटियों के ऊपर बने संकरें रास्तों से गुजरते ऐसा लग रहा था कि रंग-बिरंगे फूल मुस्करा रहे हों और हम किसी सघन हरियाली वाली गुफा के बीच हिचकोले खाते निकल रहे हों।

इस असीम बिखरी सुंदरता को देख सैलानी झूम-झूम गा रहे थे "सुहाना सफर और ये मौसम हंसी…।" किंतु लेखिका एक ऋषि की तरह शांत थी वह सारे दृश्य को अपने भीतर भर लेना चाहती थी वह जीप की खिड़की से आसमान को छूती हुई पर्वत शिखरों को देखती, कभी चाँदी की तरह चमकती तिस्ता नदी के सौंदर्य को देखती कभी शिखरों के भी शिखर से गिरते हुए झरने 'सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल' को देखती जिसके सौंदर्य को सैलानी अपने-अपने कैमरों में कैद कर रहे थे।

लेखिका ने जीप से उतरकर किसी राजकुमारी-सी एक पत्थर के ऊपर बैठ बहती जलधारा में पाँव डुबाया और भीतर तक भीग गई मन काव्यमय हो उठा, सत्य और सौंदर्य को छूने लगा लेखिका को लगा कि उन अद्भुत क्षणों में जीवन की शक्ति का अहसास हो रहा है। में स्वयं भी देश और काल की सरहदों से दूर बहती धारा बन बहने लगी हूँ। भीतर की सारी तामसिकताएँ और दुष्ट वासनाएँ इस निर्मल धारा में बह गई हैं। इतने में नार्गे ठेलने लगा, आगे इससे भी सुंदर नजारे मिलेंगे। साना साना हाथ जोड़ि

लेखिका अनमनी-सी उठी और थोड़ी देर बाद वैसे ही नजारे आत्मा और आंखों को सुख देने वाले नजारे लेखिका को आश्चर्य हो रहा था कि पल भर में ब्रह्मांड में कितना कुछ घटित हो रहा था कि सतत् प्रवाहमान झरने, नीचे बहती हुई तिस्ता नदी, ऊपर मंडराते आवारा बादल, मद्धिम हवा में हिलोरे लेते हुए फूल, सब अपनी-अपनी लय में बहते हुए चरवेति-चैरवेति। यह देख लेखिका को एहसास हुआ कि जीवन का आनंद है यही चलायमान सौंदर्य इस सौंदर्य को देखकर उसे लगा कि में सचमुच ईश्वर के निकट हूँ और सुबह सीखी हुई प्रार्थना फिर होंठों को छूने लगी-साना-साना हाथ जोड़ि…

मातृत्व और श्रम साधना का दृश्य यकायक लेखिका के मन से सौंदर्य की छटा छिटक गई। ऐसे छिटक गई कि मानो नृत्यांगना के नूपुर के अचानक टूट गए हों उसने देखा कि पहाड़ी औरतें पत्थरों पर बैठी पत्थर तोड़ रही हैं। गूंथे आटे-सी कोमल काया परंतु हाथों में कुदाल और हथीड़े कईयों की पीठ पर बँधी डोको (बड़ी टोकरी) में उनके बच्चे भी बँधे हुए थे। कुछ कुदाल को भरपूर ताकत के साथ जमीन पर मार रही थीं।

इतने स्वर्गीय सौंदर्य के बीच भूख, मीत, दैन्य और जिंदा रहने का यह जंग मातृत्व और श्रम-साधना साथ-साथ यहीं खड़े बी.आर.ओ. के 1 कर्मचारी से लेखिका ने पूछा- यह क्या हो रहा है। उसने बताया कि जिन रास्तों से गुजरते आप हिमशिखरों से टक्कर लेने जा रही है। उन्हीं रास्तों को ये पहाड़िने चौड़ा बना रही हैं।

'बड़ा खतरनाक कार्य होगा यह लेखिका के कहने पर उसने कहा पिछले महीने तो एक की जान चली गई जरा-सी चूक और सीधी पाताल प्रवेश तभी लेखिका को सिक्किम सरकार द्वारा लिखे बोर्ड की याद आई जिस पर लिखा था (आप ताज्जुब करेंगे पर इन रास्तों की बनाने में लोगों ने मीत को झुठलाया है) यह याद कर लेखिका का मानसिक चैनल बदल गया उसे पलामू और गुमला के जंगलों की याद आ गई उसने वहीं देखा था कि पीठ पर बच्चे को कपड़े से बांधकर पत्तों की तलाश में वन-वन डोलती आदिवासी युवतियों उन आदिवासी युवतियों के फूले हुए पाँव और इन पत्थर तोड़ती हुई पहाड़िनों के हाथों में पड़ी गाँठे दोनों एक ही कहानी कहते हैं कि आम जिंदगी की कहानी हर जगह एक-सी है कि सारी मलाई एक तरफ, सारे आँसू, अभाव, यातना और वंचना एक तरफ तभी उन्हें गमगीन देखकर जितेन नार्गे ने कहा- मैडम यह मेरे देश की आम जनता है।

 इन्हें तो आप कहीं भी देख लेंगी। आप इन्हें नहीं पहाड़ों की सुंदरता को देखिए जिसके लिए आप इतने पैसे खर्च करके आई हैं।" किंतु लेखिका मन-ही-मन सोच रही थी कि ये देश की आम जनता नहीं है, जीवन का संतुलन भी हैं। ये कितना कम लेकर समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती हैं। तभी लेखिका ने देखा कि वे श्रम सुंदरियाँ किसी बात पर खिलखिलाकर हंस पड़ीं और ऐसा लगा कि जीवन लहरा उठा हो, सारा खंडहर ताजमहल बन गया हो।

स्कूल से लौटते पहाड़ी बच्चे-लेखिका लगातार ऊंचाइयों की ओर बढ़ रही थी। रास्ते में स्कूल से लौटते पहाड़ी बच्चे मिले जिनके बारे में नागें बता रहा था यहाँ का जीवन कठोर है यहाँ एक ही स्कूल है। दूर-दूर से बच्चे उसी स्कूल में जाते हैं। इस स्कूल में पढ़ने वाले अधिकांश बच्चे अपनी माँओं के साथ काम करते हैं। आगे बढ़ते जा रहे थे खतरा भी बढ़ता ही जा रहा था। रास्ते सैंकरे होते जा रहे थे। रास्ते में जगह-जगह लिखी हुई चेतावनियाँ खतरों के प्रति सजग कर रही थीं।

चाय के बागानों में युवतियों सूरज ढल रहा था, उसी समय पहाड़ी औरतें गाएँ चराकर वापस लौट रही थीं। कुछ लड़कियों के सिर लकड़ियों के भारी गट्ठर थे। आसमान बादलों से घिरा था उतरती संध्या में जीप अब चाय के बागानों से गुजर रही थी। वहाँ दृश्य देखा कि चाय के भरे-भरे बागानों में कई युवतियों बोलू (सिक्किम-परिधान) पहने हुए चाय की पत्तियाँ तोड़ रही थीं। नदी की तरह उफान लेता यीवन और श्रम से दमकता गुलाबी चेहरा और डूबते सूर्य की इंद्रधनुषी छटा को देखकर मंत्रमुग्ध-सी लेखिका चीख पड़ी युवतियों का अधिक सौंदर्य लेखिका के लिए असहय था।

लायुंग में पड़ाव-गगनचुंबी पहाड़ों के नीचे साँस लेती एक छोटी-सी बस्ती लायुंग तिस्ता नदी के तीर पर लकड़ी के बने घर में ठहरे। में अपनी सुस्ती दूर करने के उद्देश्य से हाथ-मुँह धोकर तिस्ता नदी के किनारे पत्थरों पर बैठ गई। वातावरण में अद्भुत शांति, आखें भर आई। लेखिका ने अनुभव किया कि ज्ञान का नन्हा सा बोधिसत्व जैसे भीतर उगने लगा। वहीं सुख शांति है, सुकून है जहाँ अखंडित संपूर्णता है-पेड़-पौधे, पशु, पक्षी और आदमी सब अपनी-अपनी लय, ताल और गति में हैं। आज की पीढ़ी ने प्रकृति की इस लय, ताल और गति से खिलवाड़ कर अक्षम्य अपराध किया है।

अँधेरा होने से पहले तिस्ता नदी की धार तक पहुँची लकड़ी के बने छोटे से गेस्ट हाऊस में रुके। रात गहराने लगी। जितेन ने गाना शुरू कर दिया। एक-एक कर सभी सैलानी गोल-गोल घेरा बनाकर नाचने लगे लेखिका की पचास वर्षीया सहेली कुमारियों को भी मात करती हुई नाचने लगी, जिसे देखकर लेखिका अवाक् रह गई। लायुंग की सुबह वह टहलने निकली बर्फ की तलाश थी। कहीं बर्फ नहीं मिली। घूमते हुए सिक्किमी नवयुवक ने बताया कि बढ़ते प्रदूषण

के कारण स्नो-फॉल लगातार कम होती जा रही है। 500 फीट ऊंचाई पर कटाओ' में बर्फ मिल जाएगी। कटाओ' की ओर सफर शुरू किया। बादलों को चीरती हुई खतरनाक रास्तों पर जीप आगे बढ़ रही थी। जगह-जगह चेतावनिया लिखी हुई थीं। सबकी साँसे रुकी हुई। कटाओ के करीब पहुँचे। नार्गे ने बताया कि कटाओ हिंदुस्तान का स्विट्जरलैंड है। आगे बढ़ने पर चारों ओर साबुन के झाग की तरह गिरी हुई बर्फ दिखी। 

सभी सैलानी जीप से उत्तर कर मस्ती से बर्फ में कूदने लगे घुटनों तक नरम नरम बर्फ सब फोटो खींच रहे थे और लेखिका सोच रही थी कि शायद ऐसी ही विभोर कर देने वाली दिव्यता के बीच हमारे ऋषि-मुनियों ने वेदों की रचना की होगी जीवन 1 मूल्यों को खोजा होगा 'सर्वे भवंतु सुखिनः' का महामंत्र पाया होगा यह ऐसा सौंदर्य जिसे बड़े से बड़ा अपराधी भी देख ले तो क्षणों के लिए ही सही करुणा का अवतार बुद्ध बन जाए। दूसरी ओर लेखिका की सहेली मणि भी दार्शनिक की तरह कह रही थी- "ये हिम शिखर जल स्तंभ हैं, पूरे एशिया के देखो, प्रकृति भी किस नायाब ढंग से सारा इंतजाम करती है। 

सर्दियों में बर्फ के रूप में जल संग्रह कर लेती है और गर्मियों में पानी के लिए जब त्राहि-त्राहि मचती है तो ये ही बर्फ शिलाएं पिघल-पिघलकर जलधारा बन हमारे सूखे कंठों को तरावट पहुंचाती हैं कितनी अद्भुत व्यवस्था है जल संचय की ! इस तरह नदियों का कितना उपकार है।

थोड़ी दूर ही चीन की सीमा आगे बढ़े, फोज की छावनियाँ दिखाई दीं। थोड़ी दूर पर चीन की सीमा है जहाँ सैनिक माइनस 15 डिग्री सेल्सियस पर पहरा देते हैं। एक सैनिक लेखिका के पूछने पर बता रहा था कि आप चैन की नींद सो सकें, इसीलिए हम यहाँ पहरा देते हैं। लेखिका सोचने लगी कि जिन बर्फीले इलाकों में बैसाख के महीने में पाँच मिनट में हम ठिठुरने लगे तो ये हमारे जवान पौष, माघ के महीने में जब सब कुछ जम जाता है तब कैसे तैनात रहते होंगे?

लायुंग से यूमवांग की ओर-लायुंग से यूमयांग की ओर बढ़े। यहाँ एक नया आकर्षण था। ढेरों रूडोडेंड्री और प्रियुता के फूल इन घाटियों में बंदर भी दिखाई दिए यूमयांग पहुँचे मंजिल तक पहुँचने की खुशी थी वहाँ चिप्स बेचती सिक्किमी युवती से पूछा था-क्या तुम सिक्किमी हो तो उसने कहा- "नहीं, में इंडियन हूँ।" यह सुन लेखिका को बहुत अच्छा लगा। वहाँ पहाड़ी कुत्ते भी थे जिन्हें देखकर मणि ने कुत्तों के बारे में बताया कि ये पहाड़ी कुत्ते हैं ये भोंकते नहीं है। ये सिर्फ चांदनी रात में ही भोंकते है। यह सुनकर लेखिका को आश्चर्य हुआ क्या समुद्र की तरह कुत्तों पर भी चाँदनी कामनाओं का ज्वार-भाटा जगाती है। जितेन तरह-तरह की जानकारियाँ देता रहा यहाँ गुरुनानक की थाली से चावल छिटक गए थे यहाँ देवी-देवताओं का निवास है, यहाँ जो गंदगी फैलाएगा वह मर जाएगा। हम लोग यहाँ गंदगी नहीं फैलाते हैं, हम पहाड़, नदी, झरने आदि की पूजा करते हैं। हम गंगटोक नहीं गंतोक कहते हैं। जितेन गंतोक के बारे में बताने लगा कि सिक्किम के भारत में मिलने के बाद कप्तान शेखर दत्ता के सोच के अनुसार घाटियों में रास्ते निकाल कर टूरिस्ट-स्पॉट बनाया है। अभी भी रास्ते बन रहे हैं और नए स्थानों की खोज जारी हैं। लेखिका मन-ही-मन सोचती है कि मनुष्य की असमाप्त खोज का नाम सौंदर्य है।

साना साना हाथ जोड़ि पाठ का सार

गंतोक (गैंगटॉक) की रात्रि

लेखिका को गंतोक (गैंगटॉक) शहर सुबह, शाम और रात, हर समय बहुत अच्छा लगता है। यहाँ की रहस्यमयी सितारों भरी रात लेखिका को सम्मोहित-सी करती प्रतीत होती है। लेखिका ने यहाँ एक नेपाली युवती से प्रार्थना के बोल सीखे थे– “साना-साना हाथ जोड़ि, गर्दहु प्रार्थना। हाम्रो जीवन तिम्रो कौसेली।" जिसका हिंदी में अर्थ है— छोटे-छोटे हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रही हूँ कि मेरा सारा जीवन अच्छाइयों को समर्पित हो।

कंचनजंघा के दर्शन की प्रतीक्षा

सुबह लेखिका को यूमथांग के लिए निकलना था। जैसे ही उनकी आँख खुलती है, वह बालकनी की ओर भागती है, क्योंकि उन्हें लोगों ने बताया था कि यदि मौसम साफ़ हो, तो बालकनी से भी कंचनजंघा (हिमालय की तीसरी सबसे बड़ी चोटी) दिखाई देती है। उस सुबह मौसम अच्छा होने के बाद भी आसमान हल्के-हल्के बादलों से ढका हुआ था, जिसके कारण लेखिका को कंचनजंघा दिखाई नहीं पड़ी, किंतु सामने तरह-तरह के रंग-बिरंगे ढेर सारे फूल दिखाई दिए ।

बौद्ध पताकाओं का यूमथांग में महत्त्व

गंतोक (गैंगटॉक) से 149 किमी की दूरी पर यूमथांग था। लेखिका के साथ चल रहे ड्राइवर-कम-गाइड जितेन नार्गे उन्हें बताता है कि यहाँ के सारे रास्तों में हिमालय की गहनतम घाटियाँ और फूलों से लदी मिलेंगी। आगे बढ़ने पर उन्हें एक स्थान पर एक कतार में लगी सफ़ेद बौद्ध पताकाएँ दिखाई देती हैं, नार्गे उन्हें बताता है कि यहाँ बुद्ध की बहुत मान्यता है। जब भी किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है, उसकी आत्मा की शांति के लिए शहर से दूर किसी भी पवित्र स्थान पर एक सौ आठ श्वेत पताकाएँ फहरा दी जाती हैं और इन्हें उतारा नहीं जाता। ये स्वयं ही नष्ट हो जाती हैं।

कई बार कोई नया कार्य आरंभ करने पर भी पताकाएँ लगाई जाती हैं, लेकिन ये पताकाएँ सफ़ेद न होकर रंगीन भी होती हैं। लेखिका को यहाँ जगह-जगह पर दलाई लामा की तस्वीर दिखाई देती है। यहाँ तक कि जिस जीप में वह बैठी थी, उसमें भी दलाई लामा का चित्र लगा हुआ था।

कवी - लोंग स्टॉक

थोड़ा आगे चलने पर 'कवी- लोंग स्टॉक' स्थान आता है, जिसे देखते ही जितेन बताता है कि यहाँ 'गाइड' फ़िल्म की शूटिंग हुई थी। इसी स्थान पर तिब्बत के चीस-खे बम्सन ने लेपचाओं के शोमेन से कुंजतेक के साथ संधि-पत्र पर हस्ताक्षर किए थे तथा उसकी याद में यहाँ पर एक पत्थर स्मारक के रूप में भी है। लेखिका को एक कुटिया में घूमता हुआ चक्र दिखाई देता है, जिस पर नार्गे उन्हें बताता है कि इसे 'धर्म चक्र' कहा जाता है। इसे लोग 'प्रेयर व्हील' भी कहते हैं। इसके विषय में यह मान्यता है कि इसे घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं।

प्रकृति की मनोरमता

कुछ और आगे चलने पर बाज़ार, बस्तियाँ और लोग पीछे छूटने लगे। कहीं-कहीं स्वेटर बुनती नेपाली युवतियाँ और पीठ पर भारी-भरकम कार्टन (गत्ते का बक्सा) ढोते हुए बौने से बहादुर नेपाली मिल रहे थे। ऊपर से नीचे देखने पर मकान बहुत छोटे दिखाई दे रहे थे। अब रास्ते वीरान, सँकरे और जलेबी की तरह घुमावदार होने लगे थे। हिमालय विशालकाय होने लगा था। कहीं पर्वत शिखरों के बीच दूध की धार की तरह झर-झर नीचे गिरते हुए जलप्रपात दिखाई दे रहे थे, तो कहीं चाँदी की तरह चमक मारती तिस्ता नदी, जो सिलीगुड़ी से ही लगातार लेखिका के साथ चल रही थी, बहती हुई दिखाई दे रही थी। अब जीप सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल' नामक स्थान पर रुकी, जहाँ एक विशाल और सुंदर झरना दिखाई दे रहा था। सैलानियों ने कैमरों से उस स्थान के चित्र लेने शुरू कर दिए। लेखिका यहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य में इतना खो गई कि उनका दिल वहाँ से जाने को नहीं कर रहा था।

प्रकृति और आगे चलने पर लेखिका को हिमालय की रंग-बिरंगी चोटियाँ नए-नए रूपों में दिखाई देती हैं, जो अचानक बादलों के छा जाने पर ढक जाती हैं। धीरे-धीरे धुंध की चादर के छूट जाने पर उन्हें दो विपरीत दिशाओं से आते छाया पहाड़ दिखाई देते हैं, जो अब अपने श्रेष्ठतम रूप में उनके सामने थे। इस स्थान को देखकर लेखिका को ऐसा लगता है मानो स्वर्ग यहीं पर है। वहाँ पर लिखा था-' -'थिंक ग्रीन' जो प्रकृति और पर्यावरण के प्रति सजग होने की बात कह रहा था। लेखिका वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य से इतना प्रभावित होती है कि जीप के कुछ देर वहाँ रुकने पर वह थोड़ी दूर तक पैदल ही वहाँ के सौंदर्य को निहारने लगती है। उनकी यह मुग्धता पहाड़ी औरतों द्वारा पत्थरों को तोड़ने की आवाज़ से टूटती है।

भूख, मौत और जीवित रहने की जंग में शामिल स्त्रियाँ

लेखिका को यह देखकर बहुत दुःख हुआ कि इतने सुंदर तथा प्राकृतिक स्थान पर भी भूख, मौत और जीवित रहने की जंग चल रही थी। वहाँ पर बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन के एक कर्मचारी ने बताया कि जिन सुंदर स्थानों का दर्शन करने वह जा रही हैं, यह सब इन्हीं पहाड़ी महिलाओं द्वारा बनाए जा रहे हैं। यह काम इतना खतरनाक है कि जरा भी ध्यान चूका तो मौत निश्चित है। लेखिका को ध्यान आया कि एक स्थान पर सिक्किम सरकार का लगाया हुआ बोर्ड उन्होंने पढ़ा था, जिसमें लिखा था- 'एवर वंडर्ड हू डिफाइंड डेथ टू बिल्ड दीज़ रोड्स।' इसका हिंदी अनुवाद था- आप आश्चर्य करेंगे कि इन रास्तों को बनाने में लोगों ने मौत को झुठलाया है। वास्तव में कितना कम लेकर भी ये पहाड़ी स्त्रियाँ समाज को कितना अधिक वापस कर देती हैं।

पहाड़ी जीवन की कठोरता

जब जीप और ऊँचाई पर पहुँची तो सात-आठ वर्ष की उम्र के बहुत सारे बच्चे स्कूल से लौट रहे थे। जितेन (गाइड) उन्हें बताता है कि यहाँ तराई में ले-देकर एक ही स्कूल है, जहाँ तीन-साढ़े तीन किलोमीटर की पहाड़ी चढ़कर ये बच्चे स्कूल जाते हैं। पढ़ाई के अतिरिक्त ये बच्चे शाम के समय अपनी माँ के साथ मवेशियों को चराते हैं, पानी भरते हैं और जंगल से लकड़ियों के भारी-भारी गट्ठर ढोते हैं।

लायुंग के प्राकृतिक दृश्य

यूमथांग पहुँचने के लिए लायुग में जिस मकान में लेखिका व उनके सहयात्री ठहरे थे, वह तिस्ता नदी के किनारे लकड़ी का एक छोटा-सा घर था। वहाँ का वातावरण देखकर उन्हें लगा कि प्रकृति ने मनुष्य को सुख-शांति, पेड़-पौधे, पशु सभी कुछ दिए हैं, किंतु हमारी पीढ़ो ने प्रकृति की इस लय ताल और गति से खिलवाड़ करके अक्षम्य (क्षमा के योग्य न होने वाला) अपराध किया है। लायुंग की सुबह बेहद शांत और सुरम्य थी। वहाँ के अधिकतर लोगों की जीविका का साधन पहाड़ी आलू, धान की खेती और दारू का व्यापार है। लेखिका सुबह अकेले ही पहाड़ों की बर्फ़ देखने निकल जाती हैं, परंतु वहाँ ज़रा भी बर्फ़ नहीं थी। लायुंग में एक सिक्किमी नवयुवक उन्हें बताता है कि प्रदूषण के चलते यहाँ बर्फबारी (स्नो-फॉल) लगातार कम होती जा रही है।

भारत का स्विट्ज़रलैंड

बर्फ़बारी देखने के लिए लेखिका अपने सहयात्रियों के संग लायुंग से 500 फीट की ऊँचाई पर स्थित 'कटाओ' नामक स्थान पर जाती हैं। इसे भारत का स्विट्ज़रलैंड कहा जाता है। 'कटाओ' जाने का मार्ग बहुत दुर्गम था। सभी सैलानियों की साँसे रुकी जा रही थीं। रास्ते धुँध और फिसलन से भरे थे, जिनमें बड़े-बड़े शब्दों में चेतावनियाँ लिखी थीं— 'इफ यू आर मैरिड, डाइवोर्स स्पीड', 'दुर्घटना से देर भली, सावधानी से मौत टली ।'

कटाओ की सुंदरता

कटाओ पहुँचने के रास्ते में दूर से ही बर्फ से ढके पहाड़ दिखाई देने लगे थे। पहाड़ ऐसे लग रहे थे जैसे किसी ने उन पर पाउडर छिड़क दिया हो या साबुन के झाग चारों ओर फैला दिए हों। सभी यहाँ बर्फ़ पर कूदने लगे थे। लेखिका को लगा शायद ऐसी ही विभोर कर देने वाली दिव्यता के बीच हमारे ऋषि-मुनियों ने वेदों की रचना की होगी और जीवन के गहन सत्यों को खोजा होगा।

लेखिका की मित्र मणि एकाएक दार्शनिकों की तरह कहने लगीं, "ये हिमशिखर जल स्तंभ हैं, पूरे एशिया के देखो, प्रकृति भी किस नायाब ढंग से इंतज़ाम करती है। सर्दियों में बर्फ के रूप में जल संग्रह कर लेती है और गर्मियों में पानी के लिए जब त्राहि-त्राहि मचती है, तो ये ही बर्फ शिलाएँ पिघल-पिघलकर जलधारा बन हमारे सूखे कंठों को तरावट पहुँचाती हैं। कितनी अद्भुत व्यवस्था है जल संचय की!”

सैनिकों की वीरता के किस्से

वहाँ से आगे बढ़ने पर उन्हें मार्ग में इक्की-दुक्की फ़ौजी छावनियाँ दिखाई 1 देती हैं। वहाँ से थोड़ी ही दूरी पर चीन की सीमा थी। जब लेखिका ने एक फ़ौजी से पूछा कि इतनी कड़कड़ाती ठंड (उस समय तापमान 15° सेल्सियस था) में आप लोगों को बहुत तकलीफ़ होती होगी, तो उसने उत्तर दिया – “आप चैन की नींद सो सकें, इसीलिए तो हम यहाँ पहरा दे रहे हैं।" थोड़ी दूर एक फौज़ी छावनी पर लिखा था- 'वी गिव अवर टुडे फॉर योर टुमारो ।' लेखिका को भारतीय सैनिकों पर बहुत गर्व होता है। वह सोचने लगती है कि पौष और माघ के महीनों में जब केवल पेट्रोल को छोड़कर सब कुछ जम जाता है, उस समय भी ये सैनिक हमारी रक्षा के लिए दिन-रात लगे रहते हैं। यूमथांग की घाटियों में ढेरों प्रियुता और रूडोडेंड्रो के फूल खिले हुए थे। जितेन उन्हें बताता है कि अगले पंद्रह दिनों में पूरी घाटी फूलों से भर उठेगी।

सिक्किम में भारत प्रेम

लेखिका यूमथांग में चिप्स बेचती हुई एक युवती से पूछती है— 'क्या तुम सिक्किमी हो?' वह युवती उत्तर देती है— 'नहीं, मैं इंडियन हूँ।' लेखिका को यह जानकर बहुत प्रसन्नता होती है कि सिक्किम के लोग भारत में मिलकर बहुत प्रसन्न हैं।

सिक्किम से जुड़ी लोक मान्यताएँ

जब लेखिका तथा उनके साथी जीप में बैठ रहे थे, तब एक पहाड़ी कुत्ते ने रास्ता काट दिया। लेखिका की साथी मणि बताती है कि ये पहाड़ी कुत्ते हैं, जो केवल चाँदनी रात में ही भौंकते हैं। वापस लौटते हुए जितेन उन्हें जानकारी देता है कि यहाँ पर एक पत्थर है, जिस पर गुरुनानक के पैरों के निशान हैं। कहा जाता है कि यहाँ गुरुनानक की थाली से थोड़े से चावल छिटककर बाहर गिर गए थे और जिस स्थान पर चावल छिटक गए थे, वहाँ चावल की खेती होती है।

खेदुम का महत्त्व

जितेन उन्हें बताता है कि तीन-चार किलोमीटर आगे 'खेदुम' नामक एक स्थान पर देवी-देवताओं का निवास है। सिक्किम के लोगों का विश्वास है, जो यहाँ गंदगी फैलाता है, उसकी मृत्यु हो जाती है। लेखिका के पूछने पर कि क्या तुम लोग पहाड़ों पर गंदगी नहीं फैलाते, तो वह उत्तर देता है — नहीं मैडम, हम लोग पहाड़, नदी, झरने इन सबकी पूजा करते हैं । जितेन यूमथांग के विषय में एक जानकारी और देता है कि जब सिक्किम में भारत में मिला तो उसके कई वर्षों बाद भारतीय सेना के कप्तान शेखर दत्ता के दिमाग में यह विचार आया कि केवल सैनिकों को यहाँ रखकर क्या होगा, घाटियों के बीच रास्ते निकालकर इस स्थान को टूरिस्ट स्पॉट बनाया जा सकता है। आज भी यहाँ रास्ते बनाए जा रहे हैं। लेखिका सोचती है कि नए-नए स्थानों की खोज अभी भी जारी है और शायद मनुष्य की कभी न समाप्त होने वाली खोज का नाम सौंदर्य है।

साना साना हाथ जोड़ि शब्दार्थ

पृष्ठ संख्या 17

अतींद्रियता-इंद्रियों से परे उजास प्रकाश उजाला सम्मोहन मोहित होना।

पृष्ठ संख्या 18

कपाट-दरवाजा रकम रकम-तरह-तरह के अवधारणाएँ सोच, विचार। पृष्ठ संख्या 19

रफ्ता-रफ्ता-धीरे-धीरे ओझल दृष्टि से परे बीरान-सुनसान विशालकाय-बड़े आकार का

पृष्ठ संख्या 20

मुंडकी- सिर जलप्रपात झरना। पराकाष्ठा चरमसीमा मशगूल-व्यस्त अभिशप्त-शापित, जिसे शाप मिल चुका' हो । सरहदों- सीमाओं। शिद्दत प्रबलता तामसिकताएँ-बुरी भावनाओं से युक्त, तमोगुण से युक्त कुटिल अनमनी-उदास नजारे दृश्य।

पृष्ठ संख्या 21 सतत - निरंतर, लगातार वासनाएँ-बुरी इच्छाएँ। तंद्रिल-अवस्था नींद की स्थिति में सयानी चतुर, समझदार जन्नत-स्वर्ग चेरवेति-चैरवेति-चलते रहो, चलते रहो वजूद अस्तित्व औकात।

पृष्ठ संख्या 22

संजीदा सावधान, गंभीर चूकभूल

पृष्ठ संख्या 23

हाथों में पड़े टाढ़े हाथों में पढ़ने वाली गाँठे गमहीन-उदासीन, दुख से रहित गमगीन दुखी बेस्ट एंड रिपेइंग-कम लेना और ज्यादा देना वर्षीला-बढ़े हुए पेट वाला 1

पृष्ठ संख्या 24

सात्विक शुद्ध, पवित्र आमा-चमक असहय-जो सहन न हो सके। मधिम-मधिम-धीमे-धीमे परिंदे-पक्षी।

पृष्ठ संख्या 25

हलाहल विष, जहर संक्रमण-संयोग, मिलन सुर्खियों में चर्चा में गुड़प-निगल लिया।

पृष्ठ संख्या 26

विभोर-आनंद में डूब जाना वृत्तिजीविका रामरोठो अच्छा है।

पृष्ठ संख्या 27

ख्वाहिश- इच्छा, अभिलाषा टूरिस्ट स्पॉट-भ्रमण स्थल विभोर प्रसन्न ठगा सा रह जाना आश्चर्य चकित रह जाना। नायाब -अद्वितीय। लम्हों- क्षणों बॉर्डर एरिया सीमावर्ती क्षेत्र मियाद सीमा, अवधि।

पृष्ठ संख्या 28

फला-फूला- उन्नत अवस्था में आबोहवा- जलवायु

पृष्ठ संख्या 29

विस्मय आश्चर्य से फुट-प्रिंट-पैरों के चिह्न

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 3 साना-साना हाथ जोड़ि

पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को किस तरह सम्मोहित कर रहा था?
उत्तर-
झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका के मन में सम्मोहन जगा रहा था। इस सुंदरता ने उस पर ऐसा जादू-सा कर दिया था कि उसे सब कुछ ठहरा हुआ-सा और अर्थहीन-सा लग रहा था। उसके भीतर-बाहर जैसे एक शून्य-सा व्याप्त हो गया था।


प्रश्न 2.
गंतोक को ‘मेहनकश बादशाहों का शहर’ क्यों कहा गया?
उत्तर-
गंतोक एक ऐसा पर्वतीय स्थल है जिसे वहाँ के मेहनतकश लोगों ने अपनी मेहनत से सुरम्य बना दिया है। वहाँ सुबह, शाम, रात सब कुछ सुंदर प्रतीत होता है। यहाँ के निवासी भरपूर परिश्रम करते हैं, इसीलिए गंतोक को मेहनतकश बादशाहों का शहर कहा गया है।

प्रश्न 3.
कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना किन अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है?
उत्तर-
श्वेत पताकाएँ किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु पर फहराई जाती हैं। किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु हो जाए तो उसकी आत्मा की शांति के लिए नगर से बाहर किसी वीरान स्थान पर मंत्र लिखी एक सौ आठ पताकाएँ फहराई जाती हैं, जिन्हें उतारा नहीं जाता। वे धीरे-धीरे अपने-आप नष्ट हो जाती हैं।
किसी शुभ कार्य को आरंभ करने पर रंगीन पताकाएँ फहराई जाती हैं।


प्रश्न 4.
जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जनजीवन के बारे में क्या महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ दीं, लिखिए।
उत्तर-
जितेन ने लेखिका को एक अच्छे गाइड की तरह सिक्किम की मनोहारी प्राकृतिक छटा, सिक्किम की भौगोलिक स्थिति और वहाँ के जनजीवन की जानकारियाँ इस प्रकार दीं-

सिक्किम में गंतोक से लेकर यूमथांग तक तरह-तरह के फूल हैं। फूलों से लदी वादियाँ हैं।
शांत और अहिंसा के मंत्र लिखी ये श्वेत पताकाएँ जब यहाँ किसी बुद्ध के अनुयायी की मौत होती है तो लगाई जाती हैं। ये 108 होती हैं।
रंगीन पताकाएँ किस नए कार्य के शुरू होने पर लगाई जाती हैं।
कवी-लोंग-स्टॉक-यहाँ ‘गाइड’ फिल्म की शूटिंग हुई थी।
यह धर्मचक्र है अर्थात् प्रेअर व्हील। इसको घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं।
यह पहाड़ी इलाका है। यहाँ कोई भी चिकना-चर्बीला आदमी नहीं मिलता है।
नार्गे ने उत्साहित होकर ‘कटाओ’ के बारे में बताया कि ‘कटाओ हिंदुस्तान का स्विट्जरलैंड है।”
यूमथांग की घाटियों के बारे में बताया कि बस पंद्रह दिनों में ही देखिएगा पूरी घाटी फूलों से इस कदर भर जाएगी कि लगेगा फूलों की सेज रखी हो।

प्रश्न 5.
लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका को पूरे भारत की आत्मा एक-सी क्यों दिखाई दी?
उत्तर-
लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका ने उसके बारे में पूछा तो पता चला कि यह धर्म-चक्र है। इसे घुमाने पर सारे पाप धुल जाते हैं। जितेन की यह बात सुनकर लेखिका को ध्यान आया कि पूरे भारत की आत्मा एक ही है। मैदानी क्षेत्रों में गंगा के विषय में भी ऐसी ही धारणा है। उसे लगा कि पूरे भारत की आत्मा एक-सी है। सारी वैज्ञानिक प्रगति के बावजूद उनकी आस्थाएँ, विश्वास, अंध-विश्वास और पाप-पुण्य की अवधारणाएँ एक-सी हैं।

प्रश्न 6.
जितने नार्गे की गाइड की भूमिका के बारे में विचार करते हुए लिखिए कि एक कुशल गाइड में क्या गुण होते हैं?
उत्तर-
जितेन नार्गे लेखिका का ड्राइवर कम गाइड था। वह नेपाल से कुछ दिन पहले आया था जिसे नेपाल और सिक्किम की अच्छी जानकारी थी। क्षेत्र-से सुपरिचित था। वह ड्राइवर के साथ-साथ गाइड का कार्य कर रहा था। उसमें प्रायः गाइड के वे सभी गुण विद्यमान थे जो अपेक्षित होते हैं

एक कुशल गाईड में उस स्थान की भौगोलिक, प्राकृतिक और सामाजिक जानकारी होनी चाहिए, वह नार्गे में सम्यक रूप से थी।
गाइड के साथ-साथ नार्गे ड्राइवर भी था अतः कहाँ रुकना है? यह निर्णय वह स्वयं ही करने में समर्थ थी। उसे कुछ सलाह देने की आवश्यकता नहीं होती है।

गाइड में सैलानियों को प्रभावित करने की रोचक शैली होनी चाहिए जो उसमें थी। वह अपनी वाक्पटुता से लेखिका को प्रभावित करता था; जैसे-“मैडम, यह धर्म चक्र है-प्रेअर व्हील, इसको घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं।”
एक सुयोग्य गाइड क्षेत्र के जन-जीवन की गतिविधियों की भी जानकारी रखता है और संवेदनशील भी होता है।
वह पर्यटकों में इतना घुल-मिल जाता है कि स्वयं गाने के साथ नाच उठता है। और सैलानी भी नाच उठते हैं। इस तरह आत्मीय संबंध बना लेता है।
कुशल गाईड वाक्पटु होता है। वह अपनी वाक्पटुता से पर्यटन स्थलों के प्रति | जिज्ञासा बनाए रखता है। पताकाओं के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी देकर नार्गे उस स्थान के महत्व को बढ़ा देता है।

प्रश्न 7.
इस यात्रा-वृत्तांत में लेखिका ने हिमालय के जिन-जिन रूपों का चित्र खींचा है, उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
इस यात्रा-वृत्तांत में लेखिका ने हिमालय के पल-पल परिवर्तित होते रूप को देखा। ज्यों-ज्यों ऊँचाई पर चढ़ते जाएँ हिमालय विशाल से विशालतर होता चला जाता है। छोटी-छोटी पहाड़ियाँ विशाल पर्वतों में बदलने लगती हैं। घाटियाँ गहराती-गहराती पाताल नापने लगती हैं। वादियाँ चौड़ी होने लगती हैं, जिनके बीच रंग-बिरंगे फूल मुसकराते हुए नज़र आते हैं। चारों ओर प्राकृतिक सुषमा बिखरी नज़र आती है। जल-प्रपात जलधारा बनकर पत्थरों के बीच बलखाती-सी निकलती है। तो मन को मोह लेती है। हिमालय कहीं हरियाली के कारण चटक हरे रंग की मोटी चादर-सा नजर आता है, कहीं पीलापन लिए नज़र आता है। कहीं पलास्टर उखड़ी दीवार की तरह पथरीला नजर आता है।

प्रश्न 8.
प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका को कैसी अनुभूति होती है?
उत्तर-
लेखिका प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर एकदम मौन, किसी ऋषि की तरह शांत होकर वह सारे परिदृश्य को अपने भीतर समेट लेना चाहती थी। वह रोमांचित थी, पुलकित थी।


उसे आदिम युग की अभिशप्त राजकुमारी-सी नीचे बिखरे भारी-भरकम पत्थरों पर झरने के संगीत के साथ आत्मा का संगीत सुनने जैसा आभास हो रहीं था। ऐसा प्रतीत हुआ जैसे देश और काल की सरहदों से दूर बहती धारा बन बहने लगी हो। भीतर की सारी तामसिकताएँ और दुष्ट वासनाएँ इस निर्मल धारा में बह गई हों। उसका मन हुआ कि अनंत समय तक ऐसे ही बहती रहे और इस झरने की पुकार सुनती रहे।
प्रकृति के इस सौंदर्य को देखकर लेखिका को पहली बार अहसास हुआ कि यही चलायमान सौंदर्य जीवन का आनंद है।

प्रश्न 9.
प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को कौन-कौन से दृश्य झकझोर गए?
उत्तर-
प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को सड़क बनाने के लिए पत्थर तोड़ती, सुंदर कोमलांगी पहाड़ी औरतों का दृश्य झकझोर गया। उसने देखा कि उस अद्वितीय सौंदर्य से निरपेक्ष कुछ पहाडी औरतें पत्थरों पर बैठी पत्थर तोड़ रही थीं। उनके हाथों में कुदाल और हथौड़े थे और कइयों की पीठ पर डोको (बड़ी टोकरी) में उनके बच्चे भी बँधे थे। यह विचार उसके मन को बार-बार झकझोर रहीं था कि नदी, फूलों, वादियों और झरनों के ऐसे स्वर्गिक सौंदर्य के बीच भूख, मौत, दैन्य और जिजीविषा के बीच जंग जारी है।

प्रश्न 10.
सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने में किन-किन लोगों का योगदान होता है, उल्लेख करें।
उत्तर-
सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव कराने में निम्न लोगों का योगदान , सराहनीय होता है

वे सरकारी लोग जो व्यवस्था में संलग्न होते हैं।
वहाँ के स्थानीय गाइड जो उस क्षेत्र की सर्वथा जानकारी रखते हैं।
वहाँ के स्थानीय लोग जो सैलानियों के साथ रुचि से बातें करते हैं।
वे सहयोगी यात्री जो यात्रा में मस्ती भरा माहौल बनाए रखते हैं और कभी निराश नहीं होते हैं। उत्साह से भरपूर होते हैं।

प्रश्न 11.
“कितना कम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा देती हैं।” इस कथन के आधार पर स्पष्ट करें कि आम जनता की देश की आर्थिक प्रगति में क्या भूमिका है?
उत्तर
किसी देश की आमजनता देश की आर्थिक प्रगति में बहुत अधिक अप्रत्यक्ष योगदान देती है। आम जनता के इस वर्ग में मज़दूर ड्राइवर, बोझ उठाने वाले, फेरीवाले, कृषि कार्यों से जुड़े लोग आते हैं। अपनी यूमथांग की यात्रा में लेखिका ने देखा कि पहाड़ी मजदूर औरतें पत्थर तोड़कर पर्यटकों के आवागमन के लिए रास्ते बना रही हैं। इससे यहाँ पर्यटकों की संख्या में वृद्धि होगी जिसका सीधा-सा असर देश की प्रगति पर पड़ेगा। इसी प्रकार कृषि कार्यों में शामिल मजदूर, किसान फ़सल उगाकर राष्ट्र की प्रगति में अपना बहुमूल्य योगदान देते हैं।

प्रश्न 12.
आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति के साथ किस तरह का खिलवाड़ किया जा रहा है। इसे रोकने में आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए।
उत्तर-
प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने के क्रम में आज पहाड़ों पर प्रकृति की शोभा को नष्ट किया जा रहा है। वृक्षों को काटकर पर्वतों को नंगा किया जा रहा है। शुद्ध, पवित्र नदियों को विविध प्रकार से प्रदूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। नगरों का, फैक्टरियों का गंदा पानी पवित्र नदियों में छोड़ा जा रहा है। सुख-सुविधा के नाम पर पॉलिथिन का अधिक प्रयोग और वाहनों के द्वारा प्रतिदिन छोड़ा धुंआ पर्यावरण के संतुलन को बिगाड़ रहा है। इस तरह प्रकृति का गुस्सा बढ़ रहा है, मौसम में परिवर्तन आ रहा है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं।


प्रकृति के साथ खिलवाड़ को रोकने में हम सहयोग दे सकते हैं

वर्तमान में खड़े वृक्षों को न काटें और न काटने दें।
यथासंभव वृक्षारोपण करें और दूसरों को वृक्षारोपण के लिए प्रेरित करें।
वाहनों का प्रयोग यथासंभव कम करें। सब्जी लाने और व्यर्थ सड़कों पर घूमने | में वाहनों का उपयोग न करें।
पॉलीथिन, अवशिष्ट पदार्थों तथा नालियों के गंदे पानी को नदियों में न जाने दें।

प्रश्न 13.
प्रदूषण के कारण स्नोफॉल में कमी का जिक्र किया गया है? प्रदूषण के और कौन-कौन से दुष्परिणाम सामने आए हैं, लिखें।
उत्तर-
लेखिका को उम्मीद थी कि उसे लायुग में बर्फ देखने को मिल जाएगी, लेकिन एक सिक्कमी युवक ने बताया कि प्रदूषण के कारण स्नोफॉल कम हो गया है; अतः उन्हें 500 मीटर ऊपर कटाओ’ में ही बर्फ देखने को मिल सकेगी। प्रदूषण के कारण पर्यावरण में अनेक परिवर्तन आ रहे हैं। स्नोफॉल की कमी के कारण नदियों में जल-प्रवाह की मात्रा कम होती जा रही है। परिणामस्वरूप पीने योग्य जल की कमी सामने आ रही है। प्रदूषण के कारण ही वायु प्रदूषित हो रही । है। महानगरों में साँस लेने के लिए ताजा हवा का मिलना भी मुश्किल हो रहा है। साँस संबंधी रोगों के साथ-साथ कैंसर तथा उच्च रक्तचाप की बीमारियाँ बढ़ रही हैं। ध्वनि प्रदूषण मानसिक अस्थिरता, बहरेपन तथा अनिद्रा जैसे रोगों का कारण बन रहा है।

प्रश्न 14.
‘कटाओ’ पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है। इस कथन के पक्ष में अपनी राय व्यक्त कीजिए?
उत्तर-
‘कटाओ’ को अपनी स्वच्छता और सुंदरता के कारण हिंदुस्तान का स्विट्जरलैंड कहा जाता है या उससे भी अधिक सुंदर। यह सुंदरता आज इसलिए विद्यमान है कि यहाँ कोई दुकान आदि नहीं है। यदि यहाँ भी दुकानें खुल जाएँ, व्यवसायीकरण हो जाए तो इस स्थान की सुंदरता जाती रहेगी, इसलिए कटाओं में दुकान का न होना उसके लिए वरदान है।


मनुष्य सुंदरता को देखकर प्रसन्न होता है तो मनुष्य ही सुंदरता को बिगाड़ता है। अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य का पालन न कर प्रयुक्त चीजों के अवशिष्ट को जहाँ-तहाँ फेंक सौंदर्य को ठेस पहुँचाए बिना नहीं रहता है। ‘कटाओ’ में दुकान न होने से व्यवसायीकरण नहीं हुआ है जिससे आने-जाने वाले लोगों की संख्या सीमित रहती है, जिससे यहाँ की सुंदरता बची है। जैसे दुकानें आदि खुल जाने से अन्य पवित्र स्थानों की सुंदरता जाती रही है वैसे ही कटाओ की सुंदरता भी मटमैली हो जाएगी।

प्रश्न 15.
प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है?
उत्तर-
प्रकृति ने जल-संचय की बड़ी अद्भुत व्यवस्था की है। प्रकृति सर्दियों में पर्वत शिखरों पर बर्फ के रूप में गिरकर जल का भंडारण करती है। हिम-मंडित पर्वत-शिखर एक प्रकार के जल-स्तंभ हैं, जो गर्मियों में जलधारा बनकर करोड़ों कंठों की प्यास बुझाते हैं। नदियों के रूप में बहती यह जलधारा अपने किनारे बसे नगर-गाँवों में जल-संसाधन के रूप में तथा नहरों के द्वारा एक विस्तृत क्षेत्र में सिंचाई करती हैं और अंततः सागर में जाकर मिल जाती हैं। सागर से जलवाष्प बादल के रूप में उड़ते हैं, जो मैदानी क्षेत्रों में वर्षा तथा पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फ के रूप में बरसते हैं। इस प्रकार ‘जल-चक्र’ द्वारा प्रकृति ने जल-संचयन तथा वितरण की व्यवस्था की है।

प्रश्न 16.
देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी किस तरह की कठिनाइयों से जूझते हैं? उनके प्रति हमारा क्या उत्तरदायित्व होना चाहिए?
उत्तर-
देश की सीमाओं पर बैठे फौजी उन सभी विषमताओं में जूझते हैं जो सामान्य जनजीवन के लिए अति कठिन है। कड़कड़ाती ठंड जहाँ तापमान माइनस में चला जौता है, जहाँ पेट्रोल को छोड़ सब कुछ जम जाता है, वहाँ भी फौजी जम्न तैनाते रहते हैं। इसी तरह वे शरीर को तपा देने वाली गर्मियों के दिनों में रेगिस्तान में रहते हुए हाँफ-हॉफ कर अनेक विषमताओं से जूझते हुए कठिनाइयों का सामना करते हैं।

उनके प्रति हमारा दायित्व है कि हम उनका सम्मान करें, उन्हें देश की प्रतिष्ठा और गौरव को अक्षुण्ण रखने वाले महारथी के रूप में आदर दें। उनके और उनके परिवारों के प्रति सम्माननीय भाव तथा आत्मीय संबंध बनाए रखें। सैनिकों के दूर रहते हुए उनके हर कार्य में सहयोगी बनें। उन्हें अकेलेपन का एहसास न होने दें तथा उन्हें निराशा से बचाएँ।

अन्य पाठेतर हल प्रश्न

प्रश्न 1.
रात के सम्मोहन में डूबी लेखिका अपने बाहर-भीतर एक शून्यता की स्थिति महसूस कर रही थी। लेखिका ऐसी स्थिति से कब और कैसे मुक्त हुई ?
उत्तर-
लेखिका गंतोक की सितारों भरी रहस्यमयी रात देखकर सम्मोहित हो रही थी। सौंदर्यपूर्ण उन जादू भरे क्षणों में लेखिका अपने बाहर-भीतर शून्यता की स्थिति महसूस कर रही थी। उसकी यह स्थिति तब टूटी जब उसके होंठ एक प्रार्थना गुनगुनाने लगे–साना-साना हाथ जोड़ि गर्दहु प्रार्थना । हाम्रो जीवन तिम्रो कोसेली। इस प्रार्थना को आज ही सवेरे उसने एक नेपाली युवती से सीखा था।

प्रश्न 2.
सुबह-सुबह बालकनी की ओर भागकर लेखिका के हाथ निराशा क्यों लगी? उसके निराश मन को हलकी-सी सांत्वना कैसे मिली?
उत्तर-
सवेरे-सवेरे आँख खुलते ही लेखिका बालकनी की ओर इसलिए भागकर गई क्योंकि वह कंचनजंगा देखना चाहती थी। उसे यहाँ के लोगों ने बताया था कि मौसम साफ़ होने पर बालकनी से कंचनजंगा दिखाई देती है। मौसम अच्छा होने के बाद भी बादल घिरे थे, इसलिए कंचनजंगा न देख पाने के कारण उसके हाथ निराशा लगी। लेखिका ने रंग-बिरंगे इतने सारे फूल खिले देखे कि उसे लगा कि वह फूलों के बाग में आ गयी है। इससे उसके मन को हलकी-सी शांति मिली।


प्रश्न 3.
‘कवी-लोंग-स्टॉक’ के बारे में जितेन नार्गे ने लेखिका को क्या बताया?
उत्तर-
‘कवी-लोंग-स्टॉक’ के बारे में जितेन नार्गे ने लेखिका को यह बताया कि इसी स्थान पर ‘गाइड’ फ़िल्म की शूटिंग हुई थी। तिब्बत के चीस-खेबम्सन ने लेपचाओं के शोमेन से कुंजतेक के साथ संधि-पत्र पर यहीं हस्ताक्षर किए थे। यहाँ सिक्किम की दोनों स्थानीय जातियों लेपचा और भूटिया के बीच लंबे समय तक चले झगड़े के बाद शांतिवार्ता की शुरूआत संबंधी पत्थर स्मारक के रूप में मौजूद है।

प्रश्न 4.
ऊँचाई की ओर बढ़ते जाने पर लेखिका को परिदृश्य में क्या अंतर नज़र आए?
उत्तर-
लेखिका ज्यों-ज्यों ऊँचाई की ओर बढ़ती जा रही थी, त्यों-त्यों-

बाज़ार लोग और बस्तियाँ कम होती जा रही थीं।
चलते-चलते स्वेटर बुनने वाली नेपाली युवतियाँ और कार्टून ढोने वाले बहादुर नेपाली ओझल हो रहे थे।
घाटियों में बने घर ताश के बने घरों की तरह दिख रहे थे।
हिमालय अब अपने विराट रूप एवं वैभव के साथ दिखने लगा था।
रास्ते सँकरे और जलेबी की तरह घुमावदार होते जा रहे थे।
बीच-बीच में रंग-बिरंगे खिले हुए फूल दिख जाते थे।

प्रश्न 5.
यूमथांग के रास्ते में दोनों ओर बिखरे असीम सौंदर्य को देखकर लेखिका एवं अन्य सैलानियों की प्रतिक्रिया किस तरह अलग थी?
उत्तर-
गंतोक से युमथांग जाते समय रास्ते के दोनों किनारों पर असीम सौंदर्य बिखरा था। इस सौंदर्य को देखकर अन्य सैलानी झूमने लगे और सुहाना सफ़र और ये मौसम हँसी…।’ गीत गाने लगे, पर लेखिका की प्रतिक्रिया इससे हटकर ही थी। वह किसी ऋषि की भाँति शांत होकर सारे परिदृश्य को अपने भीतर समेट लेना चाहती थी। वह कभी आसमान छूते पर्वत शिखरों को देखती तो कभी दूध की धार की तरह झर-झर गिरते जल प्रपातों को, तो कभी नीचे चिकने-चिकने गुलाबी पत्थरों के बीच इठलाकर बहती, चाँदी की तरह कौंध मारती तिस्ता नदी को। ऐसा सौंदर्य देखकर वह रोमांचित हो गई थी।

प्रश्न 6.
‘सेवन सिस्टर्स वाटर फॉल’ को लेखिका ने किसका प्रतीक माना? उसका सौंदर्य देख लेखिका कैसा महसूस करने लगी?
उत्तर-
‘सेवन सिस्टर्स वाटर फॉल’ को लेखिका जीवन की अनंतता का प्रतीक मान रही थी। लेखिका को उस झरने से जीवन-शक्ति का अहसास हो रहा था। इसका सौंदर्य देख लेखिका को ऐसा लग रहा था जैसे वह स्वयं देश और काल की सीमाओं से दूर बहती धारा बनकर बहने लगी है। उसकी मन की तामसिकता इस निर्मल धारा में बह गई है। वह अनंत समय तक ऐसे बहते रहना चाहती है और झरने की पुकार सुनना चाहती है।


प्रश्न 7.
लेखिका ने ‘छाया’ और ‘माया’ का अनूठा खेल किसे कहा है?
उत्तर-
लेखिका ने यूमथांग के रास्ते पर दुर्लभ प्राकृतिक सौंदर्य देखा। ये दृश्य उसकी आँखों और आत्मा को सुख देने वाले थे। धरती पर कहीं गहरी हरियाली फैली थी तो कहीं हल्का पीलापन दिख रहा था। कहीं-कहीं नंगे पत्थर ऐसे दिख रहे थे जैसे प्लास्टर उखड़ी पथरीली दीवार हो। देखते ही देखते आँखों के सामने से सब कुछ ऐसे गायब हो गया, जैसे किसी ने जादू की छडी फिरा दी हो, क्योंकि बादलों ने सब कुछ ढक लिया था। प्रकृति के इसी दृश्य को लेखिका ने छाया और माया का खेल कहा है।

प्रश्न 8.
लेखिका ने किस चलायमान सौंदर्य को जीवन का आनंद कहा है? उसका ऐसा कहना कितना उचित है और क्यों?
उत्तर-
लेखिका ने निरंतरता की अनुभूति कराने वाले पर्वत, झरने, फूल, घाटियाँ और वादियों के दुर्लभ नज़ारों को देखकर आश्चर्य से सोचा कि पल भर में ब्रह्मांड में कितना घटित हो रहा है। निरंतर प्रवाहमान झरने, वेगवती तीस्ता नदी, उठती धुंध ऊपर मँडराते आवारा बादल, हवा में हिलते प्रियुता और रूडोडेंड्रो के फूल सभी लय और तान में प्रवाहमान हैं। ऐसा लगता है। कि ये चरैवेति-चरैवेति का संदेश दे रहे हैं। उसका ऐसा कहना पूर्णतया उचित है क्योंकि इसी चलायमान सौंदर्य में जीवन का वास्तविक आनंद छिपा है।

प्रश्न 9.
लेखिका ने पहाड़ी औरतों और आदिवासी औरतों में क्या समानता महसूस की?
उत्तर
लेखिका ने देखा कि कोमल कायावाली औरतें हाथ में कुदाल और हथौड़े लिए भरपूर ताकत से पत्थरों पर मार रही थीं। इनमें से कुछ की पीठ पर बँधी डोको में उनके बच्चे भी बँधे थे। वे भूख से लड़ने के लिए मातृत्व और श्रम साधना साथ-साथ ढो रही थीं। ऐसा ही पलामू और गुमला के जंगलों में लेखिका ने देखा था कि आदिवासी युवतियाँ पीठ पर बच्चे को कपड़े से बाँधकर पत्तों की तलाश में वन-वन डोलती थीं। उनके पाँव फूले हुए थे और इधर पहाड़ी औरतों के हाथों में श्रम के कारण गाँठे पड गई थीं।

प्रश्न 10.
पहाड़ के निवासियों का जीवन परिश्रमपूर्ण एवं कठोर होता है, सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
पहाड़ के निवासी परिश्रम करते हुए कठोर जीवन जीते हैं। उन्हें अपनी रोजी-रोटी के लिए इतना श्रम करना पड़ता है कि वहाँ कोई बर्बाला नहीं दिखता है। वहाँ की औरतें शाम तक गाएँ चराती हैं और लौटते समय लकड़ियों के भारी भरकम गट्ठर लादे आती हैं। बहुत-सी औरतें पहाड़ों को तोड़कर सड़क बनाने, उन्हें चौड़ा करने जैसे कठोर परिश्रम और खतरनाक कार्यों में लगी हैं। यहाँ के बच्चों को तीन-चार किलोमीटर दूर स्कूल जाना पड़ता है। वे लौटते समय लकड़ियों का गठ्ठर साथ लाते हैं।

मूल्यपरक प्रश्न

प्रश्न 1.
गरमियों में बरफ़ शिलाएँ पिघलकर हमारी प्यास बुझाती हैं? ऐसा लेखिका की सहेली ने किस संदर्भ में कहा? बढ़ते जल प्रदूषण को दूर करने के लिए आप क्या-क्या करना चाहेंगे?
उत्तर-
गरमियों में बरफ़ शिलाएँ पिघलकर हमारी प्यास बुझाती हैं। ऐसा लेखिका की सहेली ने प्रकृति द्वारा जल संरक्षण की अद्भुत व्यवस्था के संदर्भ में कहा है। प्रकृति सरदियों में बरफ़ के रूप में जल संग्रह कर लेती है और गरमियों में पानी के लिए हाय-तौबा मचने पर ये बरफ़ शिलाएँ पिघल-पिघलकर हमारी प्यास बुझाती हैं। बढ़ते जल प्रदूषण को दूर करने के लिए मैं निम्नलिखित उपाय एवं कार्य करना चाहूँगा-

नंदियों, झीलों तथा तालाबों में दूषित जल मिलने से रोकने के लिए लोगों को जागरूक करूंगा।
फैक्ट्रियों का रसायनयुक्त कचरा इनमें मिलने से बचाने का अनुरोध करूंगा।
पूजा-पाठ की अवशिष्ट सामग्री नदियों में न डालने का अनुरोध करूंगा।
जल स्रोतों के निकट गंदगी न फैलाने का अनुरोध करूंगा।

प्रश्न 2.
‘जाने कितना ऋण है हम पर इन नदियों का’ लेखिका ने ऐसा क्यों कहा है? इन नदियों का ऋण चुकाने के लिए। आप क्या-क्या करना चाहेंगे?
अथवा
नदियों का हम पर ऋण होने पर भी हमारी आस्था इनके लिए घातक सिद्ध हो रही है, कैसे? आप नदियों को साफ़ रखने के लिए क्या-क्या करना चाहेंगे?
उत्तर
‘जाने कितना ऋण है हम पर इन नदियों का’ लेखिका ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि नदियों का पानी हमारी प्यास बुझाकर जीवन का आधार बन जाता है तो दूसरी ओर सिंचाई के काम आकर अन्न के रूप में हमारा पोषण करता है, फिर भी हम इन नदियों को विविध तरीकों से प्रदूषित एवं गंदा करते हैं। एक ओर इनमें गंदापानी मिलने देते हैं तो दूसरी ओर पुण्य पाने के लिए पूजा-पाठ की बची सामग्री, मूर्तियाँ, फूल मालाएँ डालते हैं तथा स्वर्ग पाने की लालसा में इनके किनारे लाशें जलाते हैं तथा इनमें राख फेंककर इन्हें प्रदूषित करते हैं।
इन नदियों का ऋण चुकाने के लिए हमें-

इनकी सफ़ाई पर ध्यान देना चाहिए तथा इनके किनारे गंदगी नहीं फैलाना चाहिए।
इनमें न जानवरों को नहलाना चाहिए और न कपड़े या बर्तन धोना चाहिए।
नालों एवं फैक्ट्रियों का पानी शोधित करके इनमें मिलने देना चाहिए।
पूजा-पाठ की मूर्तियाँ और अन्य सामग्री नदियों में फेंकने के बजाय जमीन में गाड़ देना चाहिए तथा लाशें जलस्रोतों से दूर जलाना चाहिए।

प्रश्न 3.
‘साना-साना हाथ जोड़ि’ पाठ में कहा गया है कि ‘कटाओ’ पर किसी दुकान का न होना वरदान है, ऐसा क्यों? भारत के अन्य प्राकृतिक स्थानों को वरदान बनाने में युवा नागरिकों की क्या भूमिका हो सकती है? (CBSE. S.P 2015)
उत्तर
लेखिका सिक्किम की यात्रा के क्रम में गंतोक, यूमथांग गई पर वहाँ उसे बरफ़ देखने को नहीं मिली, क्योंकि इन स्थानों पर बाज़ार एवं दुकानें होने से पर्याप्त व्यावसायिक गतिविधियाँ होती थीं। यहाँ प्रदूषण की मात्रा अधिक होने से आसपास का तापमान भी बढ़ा था पर कटाओं की स्थिति एकदम विपरीत थी। वहाँ कोई दुकान न होने से न प्रदूषण था और न तापमान में वृद्धि। इससे वहाँ बरफ़ गिरना पहले जैसा ही जारी था। वहाँ दुकान न होना उसके लिए वरदान था। भारत के अन्य प्राकृतिक स्थानों को वरदान बनाने के लिए युवाओं को-

वहाँ साफ़-सफ़ाई रखनी चाहिए तथा खाने के खाली पैकेट, गिलास यहाँ-वहाँ नहीं फेंकना चाहिए।
वहाँ मिलने वाले कूड़े को जलाने के बजाए ज़मीन में दबा देना चाहिए।
वहाँ व्यावसायिक गतिविधियों को बंद करा देना चाहिए।
सार्वजनिक वाहनों का प्रयोग करना चाहिए।
तेज़ आवाज़ में संगीत नहीं बजाना चाहिए।
वहाँ किसी वस्तु को जलाने से बचना चाहिए।

प्रश्न 4.
देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी कई तरह से कठिनाइयों का मुकाबला करते हैं। सैनिकों के जीवन से किन-किन जीवन मूल्यों को अपनाया जा सकता है? (SA II All India-2015)
उत्तर-
देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में देश की रक्षा करते हुए कठिनाइयों का मुकाबला करते हैं। ये फ़ौजी रेगिस्तान की गरम लू तथा पचास डिग्री सेल्सियस से अधिक गरमी में हॉफ-हॉफकर देश की चौकसी करते हैं। दूसरी ओर ये भारत के उत्तरी एवं पूर्वोत्तर राज्यों की सीमा पर माइनस पंद्रह डिग्री सेल्सियस में काम करते हैं। वे पेट्रोल के अलावा सब कुछ जमा देने वाले वातावरण की भी परवाह नहीं करते हैं।

ये फ़ौजी खुद रात-रात भर जागकर देशवासियों को चैन की नींद सोने का अवसर देते हैं। इन विपरीत स्थितियों में काम करते हुए उन्हें समय-असमय दुश्मन की गोलियों का सामना करना पड़ जाता है, पर वे अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटते हैं। इन सैनिकों के जीवन से हमें मातृभूमि से असीम लगाव, देश प्रेम, देशभक्ति, देश के लिए सर्वस्व समर्पण की भावना, देश-हित को सर्वोपरि समझने, मातृभूमि के लिए प्राणों की बाजी लगाने, कर्तव्य के प्रति सजग रहने तथा त्याग करने जैसे जीवन मूल्य अपनाना चाहिए।

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