जॉर्ज पंचम की नाक summary Class 10 Kritika

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जॉर्ज पंचम की नाक summary Class 10 Kritika





प्रस्तावना - प्रस्तुत कहानी में उस समय की भारतीय सरकार की मानसिकता व्यक्त की गई है। वर्षों से हम जिनके गुलाम रहे उन अंग्रेज़ों के - भारत से चले जाने पर भी हमारी मानसिकता परतंत्रता की बनी हुई है। ब्रिटेन की उसक इतनी है कि वहाँ की रानी एलिजाबेथ के भारत आने पर अपने काम-काज छोड़कर उनके आगमन की तैयारी और स्वागत में संपूर्ण सरकारी तंत्र लग जाता है और जॉर्ज पंचम की टूटी नाक लगाने के लिए अपनी नाक काटने को तत्पर दिखाई देता है। इस प्रकार यह व्यंग्य प्रधान कहानी है।





रानी एलिजाबेथ के आगमन पर हड़कंप - इंग्लैंड की रानी एलिजावेथ द्वितीय अपने पति के साथ भारत पधारने वाली थीं। उनके आगमन की चर्चा रोज़ लंदन के अखबारों में हो रही थी तैयारियाँ चल रही थीं। रानी हिंदुस्तान, पाकिस्तान और नेपाल के दौरे पर कौन-कौन सा सूट पहनेंगी? इसे लेकर दरजी परेशान था। उनके आने से पहले रानी के सेक्रेटरी आदि सुरक्षा की दृष्टि से दौरा कर लेना चाहते थे। फोटोग्राफरों की फौज तैयार हो रही थी। इंग्लैंड के अखबारों में जो भी खबरें छपती थीं, वे सब खबरें दूसरे दिन हिंदुस्तानी अखबारों में चिपकी हुई नज़र आती थीं कि रानी ने हल्के रंग का एक सुंदर सूट बनवाया है, जिसका रेशमी कपड़ा हिंदुस्तान से मँगवाया गया है, जिसका खर्च चार सौ पौंड आया है। फिर तो रानी के नौकरों, बावरचियों, खानसामों और अंगरक्षकों की पूरी जीवनियाँ अखबारों में छपने लगीं, यहाँ तक कि शाही महल के कुत्तों की भी तस्वीरें अखबारों में छप गई। इस तरह शंख इंग्लैंड में बज रहा था, गूँज हिंदुस्तान में हो रही थी। राजधानी में तहलका मचा हुआ था। देखते ही देखते दिल्ली की कायापलट होने लगी।





जॉर्ज पंचम की नाक मुसीबत बनी - इंडिया गेट के सामने वाली जॉर्ज पंचम की लाट की नाक यकायक गायब हो गई थी। हथियार बंद पहरेदार गश्त लगाते रहे और लाट की नाक चली गई। हिंदुस्तान के जिन लोगों की नाक मूर्तियों से गायब हो गई थी वे तो अजायबघरों में पहुँचा दी गई थीं, किंतु रानी आएँ और जॉर्ज पंचम की नाक न हो, यह कैसे हो सकता है? चिंता बढ़ी, मीटिंग बुलाई गई। सभी चिंतित थे कि यदि यह नाक नहीं है तो हमारी नाक नहीं रह पाएगी। मीटिंग में हुए निर्णय के अनुसार एक मूर्तिकार को दिल्ली में हाज़िर होने के लिए हुक्म दिया गया। मूर्तिकार उपस्थित हुआ, उसने सभी उतरे हुए चेहरे देखे। उनकी बुरी हालत देखकर मूर्तिकार की आँखों में ही आँसू आ गए। इतने में ही मूर्तिकार को एक आवाज़ सुनाई दी- "मूर्तिकार जॉर्ज पंचम की नाक लगानी है।" मूर्तिकार ने हामी भरी कि नाक लग जाएगी, पर मुझे बताना होगा कि इस लाट का पत्थर कहाँ से लाया गया था? यह सुन सब हुक्कामों ने एक-दूसरे की ओर देखा और क्लर्क को बुलाकर उसे काम सौंपा गया कि पुरातत्व की फाइलें देखकर पता लगाओ कि यह लाट कब, कहाँ बनी और पत्थर कहाँ से लाया गया? क्लर्क ने सभी फाइलें छान मारी, पर कुछ पता नहीं चला। फिर हुक्कामों की सभा हुई। सबके चेहरे पर उदासी छा गई। फिर एक कमेटी बनाकर उस नाक की ज़िम्मेदारी उस पर डाल दी गई।





पत्थर की खोज - मूर्तिकार को बुलाया। मूर्तिकार ने आश्वासन दिया परेशान मत होइए। मैं हिंदुस्तान के हर पहाड़ पर जाकर ऐसा पत्थर खोजकर लाऊँगा। कमेटी की जान में जान आई। सभापति ने बड़े गर्व से कहा- “ऐसी क्या चीज़ है जो हिंदुस्तान में मिलती नहीं हर चीज़ देश के गर्भ में छिपी है, ज़रूरत खोज करने की है। खोज करने के लिए मेहनत करनी होगी, इस मेहनत का फल हमें मिलेगा… आने वाला ज़माना खुशहाल होगा।" यह छोटा-सा भाषण अखबार में छप गया। मूर्तिकार पत्थर की खोज में निकल पड़ा। कुछ दिन बाद हताश लौटा पत्थर नहीं मिला। उसने सिर लटकाकर खबर दी कि हिंदुस्तान का चप्पा-चप्पा खोज डाला, पर इस किस्म का पत्थर नहीं मिला। यह पत्थर विदेशी है। सभापति तैश में आ गए, बोले-“लानत है आपकी अकल पर विदेशों की सारी चीजें हम अपना चुके हैं-दिल-दिमाग, तीर-तरीके और रहन-सहन, जब हिंदुस्तान में बाल डांस तक मिल जाता है तो पत्थर क्यों नहीं मिल सकता ?"





अपने किसी नेता की मूर्ति से नाक उतार ली जाए- सभापति ने फटकार लगाई तब मूर्तिकार ने एक और सलाह देने के लिए इस शर्त पर कहा कि यह बात अखबार वालों तक न पहुंचे। सभापति की आँखों में कुछ चमक आई और चपरासी से सभी दरवाज़े बंद करा दिए। मूर्तिकार ने सलाह दी- "देश में अपने नेताओं की मूर्तियाँ भी हैं, अगर इजाजत हो और आप लोग ठीक समझें तो मेरा मतलब है तो… जिसकी नाक इस लाट पर ठीक बैठे, उसे उतार लाया जाए।" यह सुन कुछ खुशी लौटने लगी सभापति ने धीमे से कहा-“लेकिन बड़ी होशियारी से।" मूर्तिकार देश दौरे पर निकल पड़ा। एक के बाद दूसरे प्रदेश, एक मूर्ति के बाद दूसरी मूर्ति की नाक टटोलने लगा, नापने लगा। दिल्ली से मुंबई (बंबई) पहुँचा दादाभाई नौरोजी, गोखले, तिलक, शिवाजी, जहाँगीर सबकी नाकें टटोलीं, गुजरात की ओर भागा-गांधी जी पटेल, महादेव देसाई की मूर्तियों को परखा और





फिर बंगाल की ओर चला-वहाँ गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर, सुभाष चंद्र बोस, राजाराम मोहन राय सबकी नाकों की नाप ली। फिर बिहार होता हुआ उत्तर प्रदेश आया- आजाद बिस्मिल, नेहरू, मालवीय की लाटों के पास गया। घबराहट में मद्रास पहुँचा। जहाँ तहाँ मैसूर, केरल का दौरा करता हुआ पंजाब पहुॅचा और लाला लाजपत राय और भगत सिंह की लाटों का सामना किया और अंत में दिल्ली पहुँचकर अपनी मुश्किल बयान की "पूरे हिंदुस्तान की परिक्रमा कर आया, सब मूर्तियाँ देख आया और सबकी नाकों का नाप लिया पर जॉर्ज पंचम की इस नाक से सबकी नाक बड़ी निकलीं।"





मूर्तिकार से यह बयान सुनकर सारे हुक्काम हताश होकर झुंझलाने लगे। मूर्तिकार ने आगे और बताया कि मैंने सुना कि बिहार सेक्रेटरिएट के सामने सन् बयालीस में शहीद हुए बच्चों की मूर्तियाँ स्थापित हैं, शायद बच्चों की नाक फिट बैठ जाए। यह सोचकर वहाँ भी पहुँचा पर उन बच्चों की नाकें भी इससे कहीं बड़ी बैठती हैं। बताइए अब मैं क्या करूँ?





मूर्तिकार की एक और सलाह-मूर्तिकार हार मानने वाला नहीं था। राजधानी में अन्य सभी तैयारियाँ चल रहीं थीं। जॉर्ज पंचम की लाट को मलकर नहला, रोगन कर तैयार कर दी गई थी। सिर्फ नाक न होने के कारण बड़े-बड़े हुक्कामों में खलबली मची हुई थी। इधर मूर्तिकार ने फिर शर्त दोहराई। कमरे के दरवाज़े बंद कर दिए गए, जिसमें कमेटी बैठी हुई थी। मूर्तिकार ने एक नई योजना पेश की- "नाक लगाना एकदम ज़रूरी है, इसलिए मेरी राय है कि चालीस करोड़ में से कोई एक जिंदा नाक काटकर लगा दी जाए…।" मूर्तिकार की इस नई सलाह को सुन सन्नाटा छा गया सबको परेशान देखकर मूर्तिकार ने कहा- "आप लोग घबराते क्यों हैं? यह काम मेरे ऊपर छोड़ दीजिए। नाक चुनना मेरा काम है। आपकी सिर्फ इज़ाज़त चाहिए।" कानाफूसी कर मूर्तिकार को इज़ाज़त दे दी गई। अखबार में सिर्फ इतना छपा कि नाक का मसला हल हो गया और राजपथ पर इंडिया गेट के पास वाली जॉर्ज पंचम की लाट के नाक लग रही है।





जॉर्ज पंचम की नाक लग गई - मूर्ति के आसपास का तालाब सुखाकर और साफ कर ताजा पानी डाला गया, जिससे जिंदा लगाई जाने वाली - नाक सूख न जाए। रानी के आने का दिन नजदीक आता जा रहा था मूर्तिकार खुद बताए हल से परेशान था। उसने फिर जिंदा नाक लाने के लिए कमेटी से कुछ और मदद माँगी। उसे मदद यह कहते हुए दे दी गई कि उस दिन हर हालत में नाक लग जानी चाहिए। वह दिन आ गया और जॉर्ज पंचम के नाक लग गई, सभी अखबारों में खबर छपी कि जॉर्ज पंचम को जिंदा नाक लगाई गई है यानी ऐसी नाक जो कतई पत्थर की नहीं लगती।





सब अखवार खाली - जिस दिन जॉर्ज पंचम के बुत पर जिंदा नाक लगाई गई, उस दिन देश में किसी उद्घाटन की खबर नहीं थी, किसी ने कोई फीता नहीं काटा कोई सार्वजनिक सभा नहीं हुई। कहीं किसी का अभिनंदन नहीं हुआ, कोई मान-पत्र भेंट करने की नौबत नहीं आई। किसी हवाई अड्डे या स्टेशन पर स्वागत समारोह नहीं हुआ। अखबार में किसी का चित्र नहीं छपा सब अखबार खाली थे। पता नहीं ऐसा क्यों हुआ?





पाठ जॉर्ज पंचम की नाक पाठ का सारांश





रानी एलिज़ाबेथ द्वितीय का हिंदुस्तान आगमन





इंग्लैंड की रानी एलिज़ाबेथ द्वितीय अपने पति के साथ हिंदुस्तान आने वाली थीं, जिसकी चर्चा अखबारों में हो रही थी। उनका सेक्रेटरी और जासूस उनसे पहले इस महाद्वीप का दौरा करने वाले थे। इंग्लैंड के अखबारों की कतरने हिंदुस्तानी अखबारों में हर दूसरे दिन चिपकी नज़र आती थीं, जिनमें रानी एलिज़ाबेथ एवं उनसे जुड़े लोगों के समाचार छपते। इस प्रकार की खबरों से भारत की राजधानी नई दिल्ली में तहलका मचा हुआ था।





नई दिल्ली में जॉर्ज पंचम की नाक की समस्या





नई दिल्ली में एक बड़ी मुश्किल जो सामने आ रही थी, वह थी जॉर्ज पंचम की नाक राजनीतिक पार्टियाँ इस बात पर बहस कर रही थीं कि जॉर्ज पंचम की नाक रहने दी जाए या हटा दी जाए। कुछ पक्ष में थे, तो कुछ विरोध कर रहे थे। आंदोलन चल रहा था। जॉर्ज पंचम की नाक के लिए हथियारबंद पहरेदार तैनात कर दिए गए थे, किंतु एक दिन इंडिया गेट के सामने वाली जॉर्ज पंचम की लाट (मूर्ति) की नाक अचानक गायब हो गई। हथियारबंद पहरेदार अपनी जगह तैनात थे और गश्त लगती रही फिर भी लाट की नाक गायब हो गई।





रानी के आने की बात सुनकर नाक की समस्या बढ़ गई। देश के शुभचिंतकों की एक बैठक हुई, जिसमें हर व्यक्ति इस बात पर सहमत था कि अगर यह नाक नहीं रही, तो हमारी भी नाक नहीं रहेगी। इसलिए एक मूर्तिकार को तुरंत दिल्ली बुलाकर मूर्ति की नाक लगाने का आदेश दिया गया। मूर्तिकार ने जवाब दिया कि नाक तो लग जाएगी, किंतु मुझे इस लाट के निर्माण का समय और जिस स्थान से यह पत्थर लाया गया, उसका पता चलना चाहिए। एक क्लर्क को इसकी पूरी छानबीन करने का काम सौंपा गया। क्लर्क ने बताया कि फाइलों में कुछ भी नहीं है।





एक विशेष कमेटी का गठन





नाक लगाने के लिए एक कमेटी बनाई गई और उसे काम सौंपा गया कि किसी भी कीमत पर नाक लगनी चाहिए। मूर्तिकार को फिर बुलाया गया। उसने कहा कि पत्थर की किस्म का पता नहीं चला, तो कोई बात नहीं। मैं हिंदुस्तान के हर पहाड़ पर जाकर ऐसा ही पत्थर खोजकर लाऊँगा।





मूर्तिकार द्वारा किए जाने वाले प्रस





मूर्तिकार ने हिंदुस्तान के पहाड़ी प्रदेशों और पत्थरों की खानों के दौरे किए, किंतु असफल रहा। उसने बताया कि इस किस्म का पत्थर कहीं नहीं मिला। यह पत्थर विदेशी है। सभापति ने कहा कि विदेशों की सारी चीज़े हम अपना चुके हैं—दिल-दिमाग, तौर-तरीके और रहन-सहन ।





जब हिंदुस्तान में 'बाल डांस' तक मिल जाता है, तो पत्थर क्यों नहीं मिल सकता? मूर्तिकार ने इसका हल निकालते हुए कहा कि यदि यह बात अख़बार वालों तक न पहुँचे तो मैं बताना चाहूँगा कि हमारे देश में अपने नेताओं की मूर्तियाँ भी हैं। यदि आप लोग ठीक समझे तो जिस मूर्ति की नाक इस लाट पर ठीक बैठे, उसे लगा दिया जाए। सभी को लगा कि समस्या का असली हल मिल गया।





मूर्तिकार फिर देश दौरे पर निकल पड़ा। उसने पूरे भारत का भ्रमण करके दादाभाई नौरोजी, गोखले, तिलक, शिवाजी, गाँधीजी, सरदार पटेल, गुरुदेव रवींद्रनाथ, सुभाषचंद्र बोस, राजा राममोहन राय, चंद्रशेखर आज़ाद, मोतीलाल नेहरू, मदनमोहन मालवीय, लाला लाजपतराय, भगत सिंह आदि की लाटों को देखा, किंतु वे सब उससे बड़ी थी। मूर्तिकार ने बिहार सेक्रेटरिएट के सामने सन् बयालीस में शहीद होने वाले बच्चों की मूर्तियों की नाक भी देखी, किंतु वे भी जॉर्ज पंचम की नाक से बड़ी थीं।





मूर्ति पर जीवित व्यक्ति की नाक लगाने का विचार





राजधानी में रानी के लिए सब तैयारियां पूरी हो गई थी। जॉर्ज पंचम की लाट को मल-मलकर नहलाया गया था। रोगन लगाया गया था, किंतु नाक नहीं थी। अचानक मूर्तिकार ने एक आश्चर्यचकित करने वाला विचार व्यक्त किया कि चालीस करोड़ लोगों में से कोई एक ज़िंदा नाक काटकर लगा दी जाए। कमेटी ने इसकी ज़िम्मेदारी मूर्तिकार को सौंप दी। अखबारों में सिर्फ इतना छपा कि नाक का मसला हल हो गया है। इंडिया गेट के पास वाली जॉर्ज पंचम की लाट को नाक लग रही है। नाक लगने से पहले फिर हथियारबंद पहरेदारों की तैनाती हुई। मूर्ति के आस-पास का तालाब सुखाकर साफ़ किया गया और ताज़ा पानी डाला गया ताकि मूर्ति को लगने वाली ज़िंदा नाक सूखने न पाए। इस बात की ख़बर जनता को नहीं थी। यह सब तैयारियाँ भीतर-भीतर चल रही थीं। रानी के आने का दिन नज़दीक आता जा रहा था। आखिर एक दिन जॉर्ज पंचम की नाक लग गई।





समाचार पत्रों की भूमिका -





अगले दिन अख़बारों में ख़बरें छापी गई कि जॉर्ज पंचम की लाट को जो नाक लगाई गई है, वह बिल्कुल असली जैसी लगती है। उस दिन के अख़बारों में एक बात और गौर करने की थी उस दिन देश में कहीं भी किसी उद्घाटन की ख़बर नहीं थी किसी ने कोई फीता नहीं काटा था। कोई सार्वजनिक सभा नहीं हुई थी। किसी का अभिनंदन नहीं हुआ था, कोई मानपत्र भेट नहीं किया गया था। किसी हवाई अड्डे या स्टेशन पर स्वागत समारोह नहीं हुआ था। किसी का चित्र भी नहीं छपा था।





कठिन शब्दों के अर्थ





मय - के साथ





तूफानी दौरा - जल्दबाजी में किया गया भ्रमण





बेसाख्ता - स्वाभाविक रूप से





खुदा की रहमत - ईश्वर की दया





काया पलट - पूरी तरह से परिवर्तन





नाज़नीनों - सुंदर स्त्री





दास्तान - कहानी





लाट - मूर्ति





खेरख्वाहों - भलाई चाहने वाले





हुक्कामों - स्वामियों





ताका - देखा





खता - गलती





दारोमदार - कार्यभार





किस्म - प्रकार





बदहवासी - परेशानी





हैरतअंगेज ख्याल - आश्चर्यचकित करने वाला विचार





कानाफूसी - धीमे स्वर में बातचीत





हिदायत - सलाह, सावधानी।


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